"ज़िन्दगी का कैसा मोड़ आया"
ज़िन्दगी का कैसा मोड़ आया |
लगता हैं खुशियों को साथ छोड़ आया ||
जब भी इस मोड़ पर खड़ी होती हु तो ऐसा लगता हैं,
ज़िन्दगी का ये कैसा रूप हैं,
चारो तरफ़ धुप ही धुप हैं |
मीलों तन्हाई बस तन्हाई हैं,
जैसे ग़म के डेरे सजाई हैं |
शिकायत फिर ज़माने की हमसे | तोंबा
ज़िन्दगी का ये कैसा रूप हैं.............
सूरज का रोज़ का निकलना और ढलना |
ऐसे | जैसे दिल का जलना और बुझाना |
ज़िन्दगी ने भी साथ छोडा | ऐसे |
रूह से साँस रूठा हो जैसे | तोंबा |
ज़िन्दगी का ये कैसा रूप हैं.............
दोस्तों का साथ तो क्या,
दुश्मनों की भी आहात नहीं |
अपना किसको कहे हम,
जब गैरों की भी आहाट नहीं |
ज़िन्दगी का ये कैसा रूप हैं.............
सपने देखा करतें थे कभी,
हकीकत में बदलेंगे इन्हे सभी |
क्यों ज़िन्दगी ऐसे पेश आई ?
मौत को भी न रास आई |
ज़िन्दगी का ये कैसा रूप हैं.............
दिल जिसको चाहा ज़ार ज़ार ,
होते गए वो दूर बार बार |
बन गए हैं बोझ इस कदर अपनो पर,
जैसे कोई हक नही रहा सपनो पर |
ज़िन्दगी का ये कैसा रूप हैं,
चारो तरफ़ धुप ही धुप हैं |
- पूर्णिमा, २००३
लगता हैं खुशियों को साथ छोड़ आया ||
जब भी इस मोड़ पर खड़ी होती हु तो ऐसा लगता हैं,
ज़िन्दगी का ये कैसा रूप हैं,
चारो तरफ़ धुप ही धुप हैं |
मीलों तन्हाई बस तन्हाई हैं,
जैसे ग़म के डेरे सजाई हैं |
शिकायत फिर ज़माने की हमसे | तोंबा
ज़िन्दगी का ये कैसा रूप हैं.............
सूरज का रोज़ का निकलना और ढलना |
ऐसे | जैसे दिल का जलना और बुझाना |
ज़िन्दगी ने भी साथ छोडा | ऐसे |
रूह से साँस रूठा हो जैसे | तोंबा |
ज़िन्दगी का ये कैसा रूप हैं.............
दोस्तों का साथ तो क्या,
दुश्मनों की भी आहात नहीं |
अपना किसको कहे हम,
जब गैरों की भी आहाट नहीं |
ज़िन्दगी का ये कैसा रूप हैं.............
सपने देखा करतें थे कभी,
हकीकत में बदलेंगे इन्हे सभी |
क्यों ज़िन्दगी ऐसे पेश आई ?
मौत को भी न रास आई |
ज़िन्दगी का ये कैसा रूप हैं.............
दिल जिसको चाहा ज़ार ज़ार ,
होते गए वो दूर बार बार |
बन गए हैं बोझ इस कदर अपनो पर,
जैसे कोई हक नही रहा सपनो पर |
ज़िन्दगी का ये कैसा रूप हैं,
चारो तरफ़ धुप ही धुप हैं |
- पूर्णिमा, २००३