Oct 3, 2009

Where is my life turning to...

"ज़िन्दगी का कैसा मोड़ आया"
ज़िन्दगी का कैसा मोड़ आया |
लगता हैं खुशियों को साथ छोड़ आया ||
जब भी इस मोड़ पर खड़ी होती हु तो ऐसा लगता हैं,

ज़िन्दगी का ये कैसा रूप हैं,
चारो तरफ़ धुप ही धुप हैं |

मीलों तन्हाई बस तन्हाई हैं,
जैसे ग़म के डेरे सजाई हैं |
शिकायत फिर ज़माने की हमसे | तोंबा
ज़िन्दगी का ये कैसा रूप हैं.............

सूरज का रोज़ का निकलना और ढलना |
ऐसे | जैसे दिल का जलना और बुझाना |
ज़िन्दगी ने भी साथ छोडा | ऐसे |
रूह से साँस रूठा हो जैसे | तोंबा |
ज़िन्दगी का ये कैसा रूप हैं.............

दोस्तों का साथ तो क्या,
दुश्मनों की भी आहात नहीं |
अपना किसको कहे हम,
जब गैरों की भी आहाट नहीं |
ज़िन्दगी का ये कैसा रूप हैं.............

सपने देखा करतें थे कभी,
हकीकत में बदलेंगे इन्हे सभी |
क्यों ज़िन्दगी ऐसे पेश आई ?
मौत को भी रास आई |
ज़िन्दगी का ये कैसा रूप हैं.............

दिल जिसको चाहा ज़ार ज़ार ,
होते गए वो दूर बार बार |
बन गए हैं बोझ इस कदर अपनो पर,
जैसे कोई हक नही रहा सपनो पर |

ज़िन्दगी
का ये कैसा रूप हैं,
चारो तरफ़ धुप ही धुप हैं |

- पूर्णिमा, २००३










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