जज़्बात मेरे होते गए हलाल दम - ब - दम |
क्या यही ज़िन्दगी हैं अब हर कदम ?
हमसे ख़ुशी क्यों नज़र चुराती हैं ? ए खुदा,
क्या हमारी दुश्मनी हैं कई बरसों से ?
हां हमें भी होती थी ख़ुशी कभी |
लगता था छुलेंगे आस्मा अभी |
पर वो तो ख्वाब ही था सभी |
हकीकत में तो वो बदलेंगे नहीं |
काश ! सब चीज़ों की तरह मिलती ख़ुशी बाजारों में | हां ,
हम भी ज़रा खरीद लातें कुछ अशरफियों में |
अब कैसे और कहाँ से लाये वो सकून और अमन ?
जिनके पीछे भागता हैं ये बेचारा मेरा मन |
- पूर्णिमा
टाइम : १२:२० पम
डेट: १६.०४.२००५