Mar 13, 2012

कम्बक्त ए मोहब्बत !

 
तेरे ख़याल के ख़याल से हैं चाहत ।
मिलकर भी मिलती नहीं राहत ।
तुझसे ज्यादा हैं तेरी याद खूबसूरत ।
कम्बक्त  क्या चीज़ हैं ये मोहोब्बत ||

हो रही हैं अब खुद से नफरत ।
तेरे खयालों में घिर्गई हु हर वक़्त ।
होकर भी तुम अजनबी, लगते हो मेरी अमानत ।
कम्बक्त  क्या चीज़ हैं ये मोहोब्बत ||

हर जवा  दिल की यही  होती हैं हस्रत ।
हो जाये उन पर भी ये इनायत, करके दिल पर हुकूमत । की
बंजाये ज़िन्दगी जीने लायक ।
कम्बक्त  क्या चीज़ हैं ये मोहोब्बत ||

 - पूर्णिमा