जिन्दा कैसे रहे बंदा?
जब जिंदगी बनरहा फ़ासी का फंदा |
विशवास की चट्टान का टूट सा जाना | ऐसे ;
अब मुश्किल हैं उन टुकड़ों का वापस समेट्पाना | फिरसे ||
दिल इतना टूट गया जिसका,
की जैसे सबसे नाता छुट सा गया उसका |
सारे जज़्बात बेह्गाये | ऐसे ;
खौलता हुआ लावा चट्टान से निकला हो जैसे |
ए जज़्बात कैसे होंगे फिर से जिन्दा ?
जब खुद होगया वो बर्फ की तरह ठंडा |
क्या वो कभी उड़ पायेगा बनके परिंदा ?
या बन जायेगा किसी शिकारी का शिकंजा?
- पूर्णिमा
१६/४/२००५ ; १२.१० पम
जब जिंदगी बनरहा फ़ासी का फंदा |
विशवास की चट्टान का टूट सा जाना | ऐसे ;
अब मुश्किल हैं उन टुकड़ों का वापस समेट्पाना | फिरसे ||
दिल इतना टूट गया जिसका,
की जैसे सबसे नाता छुट सा गया उसका |
सारे जज़्बात बेह्गाये | ऐसे ;
खौलता हुआ लावा चट्टान से निकला हो जैसे |
ए जज़्बात कैसे होंगे फिर से जिन्दा ?
जब खुद होगया वो बर्फ की तरह ठंडा |
ऐसे में क्या करें वो बंदा ?
जिसकी आँखें हो गए हो अँधा |क्या वो कभी उड़ पायेगा बनके परिंदा ?
या बन जायेगा किसी शिकारी का शिकंजा?
- पूर्णिमा
१६/४/२००५ ; १२.१० पम
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