Mar 28, 2010

" मेरा मन "

जज़्बात मेरे होते गए हलाल दम - ब - दम |
क्या यही ज़िन्दगी हैं अब हर कदम ?
हमसे ख़ुशी क्यों नज़र चुराती हैं ? ए खुदा,
क्या हमारी दुश्मनी हैं कई बरसों से ?

हां हमें भी होती थी ख़ुशी कभी |
लगता था छुलेंगे आस्मा अभी |
पर वो तो ख्वाब ही था सभी |
हकीकत में तो वो बदलेंगे नहीं |

काश ! सब चीज़ों की तरह मिलती ख़ुशी बाजारों में | हां ,
हम भी ज़रा खरीद लातें कुछ अशरफियों में |

अब कैसे और कहाँ से लाये वो सकून और अमन ?
जिनके पीछे भागता हैं ये बेचारा मेरा मन |

- पूर्णिमा
टाइम : १२:२० पम
डेट: १६.०४.२००५

4 comments:

Sumanth said...

Super & Very Nice thought :-)
Keep writing such thts.

Meethi Imli said...

Thanks Sumanth :-)

Unknown said...

Am no expert, but that was good try.
Duniya me kitna ghum hai, humare paas kitna kam hai :D

Meethi Imli said...

DiSnapper thanks a ton man!.. yes am still an amarteur.. :P but i feel goog to see such comments.. :)