सोच सोच के रह न जाए बस प्यास |
कल तक थी ये बंजर ज़मीन |
जो अब होगई हैं आबाद और रंगीन |
तुम्हारी एक छुवन से हुआ एहसास यु ,
पथ्झड में आगया हो सावन जू |
अब तो मेहेक ने लगी ज़िन्दगी मेरी ,
मिट्टी की सोंधी सोंधी खुशबु सी |
प्यासे धरती पे बरसो तुम बनके घने बादल |
यही होती हैं मेरी आरज़ू आजकल |
तुम आओगे कभी न कभी ये आस हैं |
क्या इसका कुछ तुम्हे भी एहसास हैं ?
- पूर्णिमा